झगडे के दौरान गुप्तांग पर हमले को ‘हत्या के प्रयास का’ अपराध नहीं कहा जा सकता, कर्नाटक हाई कोर्ट ने कम की दोषी की सजा

झगडे के दौरान गुप्तांग पर हमले को ‘हत्या के प्रयास का’ अपराध नहीं कहा जा सकता, कर्नाटक हाई कोर्ट ने कम की दोषी की सजा

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  • June 18, 2023
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कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत द्वारा एक आरोपी को दी गई सजा को परिवर्तित किए जाने का फैसला दिया है।

कोर्ट का कहना था कि आरोपी का अपराध गंभीर चोट की श्रेणी में आता है न कि हत्या के प्रयास का इस लिए कोर्ट ने निचली अदालत के निष्कर्ष को आईपीसी की धारा 307 से धारा 325 में परिवर्तित किए जाने का आदेश दिया।

जस्टिस के नटराजन की पीठ इस मामले में आरोपी / अपीलकर्ता की अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमे निचली अदालत द्वारा आरोपी को दी गई सजा को रद्द किये जाने की मांग की गई थी।

क्या है मामला ?
इस मामले में अपीलकर्ता पर आरोप था कि उसने पुरानी रंजिश के चलते 15 मार्च 2010 को एक शोभायात्रा के दौरान पीड़ित के गुप्तांग पर हमला कर उसे जान से मारने का प्रयास किया था। घटना के दिन शाम 6 बजे जब पीड़ित ट्रेक्टर चला रहा था तो आरोपी उसके सामने आ गया और उसे भद्दी भद्दी गलियां दीं। रात 10 बजे जब पीड़ित गांव के मेले में शोभायात्रा में अन्य लोगों के साथ डांस कर रहा था तभी आरोपी आ गया और पीड़ित के साथ झगड़ा करने लगा और जान से मारने की नियत से उसने पीड़ित के गुप्तांग पर हमला कर दिया था।

जांच के बाद आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 307, 341 और 504 के तहत निचली अदालत में मुक़दमा चला था। निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए 7 फरवरी 2012 को आईपीसी की धारा 307, 341 और 504 के तहत क्रमशः 7 साल, 1 माह और 1 साल के कारावास की सजा सुनाई थी।

निचली अदालत के फैसले के खिलाफ आरोपी ने हाई कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 374 (2) के तहत अपील दायर की थी।

कोर्ट के समक्ष आरोपी के वकील का तर्क था कि इस मामले में अभियोजन की ओर से पेश हुए चश्मदीद गवाहों पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योँकि वह पीड़ित के पास घटना के बाद आए थे। वह पीड़ित को सिर्फ हॉस्पिटल ले गए थे। ऐसे में उन्हें चश्मदीद गवाह नहीं कहा जा सकता। उनके बयानों में विरोधाभास भी है।

अभियोजन पक्ष का कहना था कि इस मामले में स्पष्ट रूप से आरोपी ने पीड़ित पर जानलेवा हमला किया था। आरोपी ने जिस तरह पीड़ित के अंडकोष पर हमला किया था उस से पीड़ित की जान जा सकती थी। अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता की संबंधित धाराओं में दोषसिद्धि को सही बताते हुए उसकी अपील को ख़ारिज किए जाने की मांग की थी।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी को यह पता नहीं था कि उसके द्वारा पीड़ित के अंडकोष पर किए गए हमले से उसकी जान जा सकती थी। हालांकि आरोपी और पीड़ित के बीच पहले से ही रंजिश थी इस लिए आरोपी का पीड़ित के साथ झगड़ा हुआ था। झगडे में आरोपी ने पीड़ित के अंडकोष पर हमला कर दिया ऐसी स्थिति में यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी हत्या करने के इरादे या उसकी तैयारी के साथ आया था।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आरोपी के अपराध को आईपीसी की धारा 325 के तहत लाया जा सकता है जिसमे गंभीर चोट का मामला बनता है।

इस संबंध में कोर्ट ने सखाराम बनाम स्टेट ऑफ़ मध्यप्रदेश 2015 और तुलाराम बनाम स्टेट ऑफ़ मध्यप्रदेश 2013 के मामलो में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भरोसा किया जिसमे चोट को आईपीसी की धारा 325 के तहत ला कर सजा को 7 साल से कम कर 3 साल कर दिया गया था।

कोर्ट ने अपीलकर्ता / आरोपी को निचली अदालत द्वारा आईपीसी की धारा 307 के तहत दोषसिद्धि को सही न मानते हुए कहा कि इस मामले में आरोपी का अपराध स्पष्ट रूप से आईपीसी की धारा 325 के तहत आता है।

कोर्ट ने हालांकि निचली अदालत द्वारा अपीलकर्ता की दोषसिद्धि की पृष्टि तो की लेकिन साथ ही यह भी कहा कि निचली अदालत के निष्कर्ष को आईपीसी की धारा 307 से धारा 325 में परिवर्तित किया जा सकता है।

कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी की धारा 307 के तहत दी गई 7 साल की सजा को आईपीसी की धारा 325 में परिवर्तित करते हुए 3 साल किए जाने का आदेश दिया।

कोर्ट ने इसी के साथ आरोपी से 50 हज़ार रूपये जुर्माने के रूप में वसूल कर पीड़ित को मुआवज़े के रूप में दिए जाने का निर्देश दिया।

Case Title : Parameshwarappa V State Criminal Appeal No. 242 of 2012

आदेश यहाँ पढ़ें –

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